Vat Savitri Vrat: वट सावित्री व्रत 6 जून को कैसे करें पूजा? क्या सामग्री लगेगी? सावित्री और सत्यवान की कथा

Vat Savitri Vrat
Vat Savitri Vrat

Vat Savitri Vrat: इस साल 6 जून 2024 गुरुवार को वट सावित्री का  व्रत रखा जाएगा। वट सावित्री व्रत का व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है। यह वट सावित्री व्रत को सुहा​गन महिलाएं अपने पति की लंबी वर्ष आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं। इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा की जाती हैं। इस दिन पूजा का मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा, जो पंचांग के अनुसार है। इस व्रत की मान्यता सावित्री और उनके पति सत्यवान को यमराज द्वारा पुन: जीवनदान की कथा है। 

Vat Savitri Vrat की पूजा कहा की जाती है?

इस वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा करना शुभ होता है और इसके बिना व्रत अधूरा होता है। इस व्रत को लेकर पुराणों के अनुसार मान्यता है की, वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु व अग्रभाग में शिव का वास माना गया है। इन सभी देवताओं का आशीर्वाद सुहागिनों को मिलता है।

वट सावित्री के व्रत में मुख्य सामग्री

इस वट सावित्री के व्रत में मुख्य सामग्री जो इस व्रत में उपयोग कीये जाते है। वो निम्न लिखित है:-

  1. कच्चा सूत, रक्षा सूत्र
  2. दीपक, गंध, इत्र, अक्षत्, धूप
  3. नारियल, मिठाई, मेवा, बताशा, पान, सुपारी
  4. घर में निर्मित पकवान भींगा चना, मूंगफली, पूड़ी, गुड़
  5. सिंदूर, रोली, चंदन, कुमकुम
  6. फल, फूल, पानी से भरा कलश
  7. सुहाग सामग्री, सवा मीटर कपड़ा, बांस का बना पंखा
  8. एक वट वृक्ष और बरगद का फल
  9. वट सावित्री व्रत कथा और पूजा विधि की पुस्तक
  10. सत्यवान, देवी सावित्री की मूर्ति

Vat Savitri Vrat की कथा सावित्री और सत्यवान की

Vat Savitri Vrat की कथा:- पौराणिक कथा के अनुसार अश्वपति नाम का एक राजा ने संतान नहीं होने के कारण उन्होंने ने पूजा, मंत्र जाप से देवी सावित्री को प्रसन्न कर लिया। राजा अश्वपति के घर एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम भी सावित्री रखा गया। कुछ वर्षों बाद सावित्री विवाह योग्य हो गई। उनके पिता अश्वपति ने स्वयं वर चुनने का अधिकार दिया। सावित्री ने अपने वर के रूप में द्युमत्सेन का पुत्र सत्यवान को चुना।

सावित्री ने सत्यवान को अपने वर के रूप में माना

देवर्षि नारद यह जानते थे की सत्यवान सर्वगुण सम्पन्न होने के बाद भी वह अल्पायु था। उन्होंने इस बारें में अश्वपति और सावित्री को बताया। लेकिन सावित्री ने सत्यवान को अपने वर के रूप में मान चुकी थी। इस निर्णय के चलते सावित्री और सत्यवान का विवाह हुआ।

सत्यवान की मृत्यु का समय

सावित्री के विवाह के बाद भी देवर्षि नारद की वाणी गुंजायमान थी, इसलिए सावित्री ने वट सावित्री व्रत करने का निश्चय किया। सत्यवान एक दिन वन की ओर जाने लगा और सावित्री ने भी उनके साथ जाने का फैसला किया। दोनों वन की तरफ  चले गए, साथ ही सत्यवान की मृत्यु का समय पास आ रहा था।

यमराज के दूत सत्यवान को लेने आ गए

एक वट वृक्ष के नीचे मूल में सावित्री बैठी हुई थी, तभी सत्यवान लकड़ी का भार उठाते हुये उनके मस्तक में पीड़ा होने लगी। सावित्री को ज्ञात हो गया था कि सत्यवान का काल आ चुका है। जब यमराज के दूत सत्यवान की देह को लेकर जाने लगे तब पतिव्रता सावित्री भी यम के पीछे-पीछे चलने लगी। जिसके बाद यमराज ने कहा – “हे नारी आपने अपने धर्म का पालन किया लेकिन अब आप लौट जाएं”। जिसके उत्तर में सावित्री ने कहा की “जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है”।

सावित्री ने 3 वचन

सावित्री के ऐसे वाणी सुनकर यमराज प्रसन्न हो गए। यमराज ने तीन वचन मांगने को कहा। जिसके बाद सावित्री ने 3 वचन मांगे:-

  1. मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें।
  2. उनका खोया राज्य दोबारा लौटा दें।
  3. वह सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हैं।

Vat Savitri Vrat की मान्यता पूरे भारतवर्ष मे फैली है

इसके बाद यमराज जी ने सावित्री के सभी वचनों को स्वीकार करते हुए तथास्तु कह दिया। साथ ही सत्यवान के प्राण लौटा दिए। भारत में Vat Savitri Vrat की मान्यता काफी ज्यादा है और सारे भारतवर्ष मे इसकी मान्यता है। सभी इस वट सावित्री व्रत की पूजा करतें है।

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Poranika Singh

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