Nitish Kumar: चुनावों में वादे करना, उन वादों को पूरा करना या ना करना, जनता को भरोसा दिलाना, उनका दिल जितना, उन्हे विश्वास करने पर मजबूर करना और वादों को पूरे करने का संतावना देना कोई बड़ी बात नहीं है हाँ बात तो तब होती है जब नेता काफी बड़े-बड़े वादे करने के बाद अपने वादों से मुकर जाते हैं। जिस पर जनता की बवाल खड़ी होती है साथ ही उनका गुस्सा देखने लायक होता है, इसी बात पर आज की खबर निर्धरित है जो की बिहार के Nitish Kumar से जुड़ी हुई है।
जनता की नाराजगी नेताओं की सियासत पर पड़ रही भारी
दरअसल विधानसभा चुनाव वर्ष 2020 बिहार के मुख्यमंत्री Nitish Kumar ने अपने चुनावों के समय बहुत सी बाते की थी साथ ही जनता से कई वादे किए थे। चुनाव के पश्चात मुख्यमंत्री को अपने दिए हुए वचनों के अनुसार जनता की सेवा करना उनका परम कर्तव्य था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब इस बार के चुनावों में जनता की नाराजगी नेताओं की सियासत पर भारी पड़ रही है। नीतीश ने 2022 में आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी तथा वह जनता दल यू राजनीतिक दल के प्रमुख नेताओं में से हैं साथ ही वे बिहार के सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री हैं।
जनता अपने CM Nitish Kumar से नाराज़
चुनावों में रूठने और मनाने का क्रम तो जारी ही रहता है जिनमे कहीं नेता नाराज हैं, तो कहीं पूरा समाज, कोई किसी पार्टी से नाराज है तो विपक्षी पार्टी एक-दूसरे से नाराज है साथ ही एक ही पार्टियों के नेता व प्रवक्ता के भी बीच नाराजगी देखी जाती है। मुख्य मुद्दा पश्चिमी चंपारण जिले के उन छह प्रखंडों का है जहां थारू जनजाति का बहुमत पर आधारित है जहाँ के मुख्यमंत्री Nitish Kumar है। बिहार की जनसभा में मुख्यमंत्री ने जनता से कुछ बात की जिस बातचीत में पता चल रहा है की वहाँ की जनता अपने CM से किस तरह नाराज़ हैं।
क्या चाहती है जनता?
जनसभा के दौरान मुख्यमंत्री ने कुछ बातें की व जनसभा के साथ मे उन्होंने जनता से बातें की जिसमे मुख्यमंत्री ने मंच से सीधे कहा कि मन में कुछ बात है, तो उसे निकाल दो, हम फिर आएंगे और बैठकर बात करेंगे। लेकिन जनता का मन कुछ और ही कहना चाहता है या तो वह नेता बदलवाना चाहते हैं या फिर सरकार। जनता अपने हितों के लिए उसी पार्टी के समर्थन के लिए खड़ी होगी जो उनके लिए किए वादों को पूरा करने में सक्षम होंगे।
कौन है थारू जनजाति?
बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थित थरुहट में करीब 900 वर्ग किमी के वाल्मिकीनगर टाइगर रिजर्व के आसपास लगभग 300 गांव फैले हुए हैं जिनमे वर्ष 2003 मे जाँच के दौरान पता लगाया गया की यहाँ की ज्यादातर जनजाति को औपचारिक रूप से अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। इनमे थारूओं की जनसंख्या ज्यादा पायी गई जो की लगभग 3 लाख है, इन थारू में अधिकांश लोगों की जीविका वन है तथा कुछ लोग जीवनयापन के लिए कृषि पर भी आधारित हैं। यहाँ की जनजाति , मंगोलियन, राजपूत या बौद्ध के वंशज के आधार पर जीवनयापन करती हैं।
थारू मतदाताओं की नाराज़गी
थारू मतदाता ने Nitish Kumar से ‘कुर्सी’ कुमार के राजनीतिक रूपांतर से भी नाराज़गी जताई हैं, कि कैसे एक बार बिहार के ‘सुशासन बाबू’ सिर्फ वफादारी बदलते रहे सत्ता में बने रहने के लिए। इस विचार पर घनश्याम राय ने कहा, “हम किसी को भी वोट देंगे, लेकिन नीतीश कुमार के उम्मीदवार को नहीं।” “कौन जानता है, अगर वह सीट जीतने के बाद कोई और बदलाव कर ले? हम फिर से शर्मिंदा होंगे। दल के साथ उन्होंने अपना विचार तो बदल ही दिया साथ ही हमसे किए वादे को भी भूल गए हैं वो।
किन समस्याओं का समाधान करने में रहे अक्षम?
दरअसल Nitish Kumar से थारु के जनजातियों ने कुछ इस प्रकार की नाराजगी जताई है की उनका कहना है की वे इन समस्याओ का समाधान करने में अक्षम रहे है:-
- भारत सरकार ने 2006 में वनाधिकार कानून को पास कर दिया है, लेकिन बिहार में यह आज तक लागू नहीं हुआ, जबकि थारू जनजाति का जीवन जंगल से जुड़ा हुआ है. इस कानून के अभाव में हम लोगों को अपने मूल अधिकार से वंचित रहना पड़ रहा है. इस कानून को लागू करने के लिए हम लोगों ने कई बार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से प्रक्रिया को पूरा भी किया, लेकिन इन प्रार्थना पत्रों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया।
- थरुहट क्षेत्र के बच्चों के लिए अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय रतनपुरवा, कदमहवा, बेलसंडी में बने हुए हैं लेकिन यहाँ संसाधन और व्यवस्था की कमी होने के करना यहाँ के बच्चों का भविष्य खतरे में है। इस बात पर भी नीतीश कुमार ने जनता को भरोसा दिलाया था की वे उनकी इनमे जरूर सहायता करेंगे।
- पूरे थरुहट क्षेत्र में लगभग 6 नये स्वास्थ्य केंद्र की स्वीकृति मिली है जिनमे तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री चंद्रमोहन राय के कार्यकाल में एक दो जगह को छोड़कर सभी जगह पर स्वास्थ्य केंद्र के भवन बनाए गए है लेकिन यहां स्वास्थ्य कर्मचारियों की तैनाती नहीं हुई साथ ही यहाँ उपकरणों की भी बहुत कमी हैं।
- नौरंगिया पुलिस गोली कांड में मृत परिवार के सदस्य को सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था, जो स्वीकृत भी हो गया है, लेकिन आज तक इसका लाभ नहीं मिल सका।