कुछ ही समय पहले भारत के खगोल भौतिकी संस्थान के खगोल वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसा कर दिखाया है जिसे सुनकर हर कोई हैरान है।
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दरअसल खगोल वैज्ञानिकों ने आगामी
सौर चक्र के आयाम की भविष्यवाणी करने के लिए एक नई विधि की खोज
कर उसे विकसित किया है।
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इस विधि से उन सभी घटनाओ और क्रियाओ पर ध्यान और नियंत्रण करना सरल हो जाएगा जो सौर चक्र के द्वारा उत्पन्न होते हैं।
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इस विधि के माध्यम से आगामी सौर चक्र कितना शक्तिशाली होगा व इसके संभावित प्रभाव क्या क्या हो सकते हैं इसका पता समय से पूर्व लगाया जा सकता है।
इस विधि के माध्यम से आगामी सौर चक्र कितना शक्तिशाली होगा व इसके संभावित प्रभाव क्या क्या हो सकते हैं इसका पता समय से पूर्व लगाया जा सकता है।
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सूरज के चुंबकीय क्षेत्र और सौर गतिविधि के बीच के संबंधों को समझने के लिए यह विधि विशेष रूप से आधारीत है।
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पृथ्वी की विद्धुत और संचार नेटवर्क की सुरक्षा, अंतरिक्ष मिशनों और उपग्रहों जैसे के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती है।
पृथ्वी की विद्धुत और संचार नेटवर्क की सुरक्षा, अंतरिक्ष मिशनों और उपग्रहों जैसे के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती है।
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सूर्य की सतह पर समय-समय पर होने वाली गतिविधियों में आने वाले बदलावों को सौर चक्र कहते है यह लगभग 11 वर्षों के अंतराल पर होता है।
सूर्य की सतह पर समय-समय पर होने वाली गतिविधियों में आने वाले बदलावों को सौर चक्र कहते है यह लगभग 11 वर्षों के अंतराल पर होता है।
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जब सतह के नीचे चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ सूर्य की सतह की एक परत से टकराती है तब सूर्य की चक्रण की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।
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सौर चक्र की प्रक्रिया के दौरान सूर्य पर सौर धब्बों की संख्या बढ़ती और घटती रहती है जिससे यह पता लगाया जाता है की सौर चक्र प्रारंभ हो गया है।
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यह चक्र सौर हवाओं, भू चुंबकीय तूफानों और पृथ्वी पर अन्य खगोलीय घटनाओं को प्रभावित करता है इसलिए इस विधि को जानना आवश्यक है।
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इस रक्षाबंधन दें यह तोहफे अपनी बहन को
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